हकीम सनाई का परिचय
हकीम सनाई का पूरा नाम अ’ब्दुल-मज्द बिन आदम और तख़ल्लुस ‘सनाई’ था। वो 470 हिज्री में मौजूदा अफ़्ग़ानिस्तान के शहर गज़नी में पैदा हुए। वो एक निहायत सादा इन्सान थे। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी दरवेशी और फ़क़ीरी में गुज़ारी। उन्हें सैर-ओ-सियाहत का शौक़ था । इस्लामी हुकूमत के ज़ेर-ए-असर मनातिक़ की सैर करने के लिए निकले । इसी दौरान उन्हें हज करने की सआ’दत भी नसीब हुई। हकीम सनाई को मुख़्तलिफ़ उ’लूम तफ़्सीर, हदीस, फ़िक़्ह और अदबी उ’लूम पर दस्तरस हासिल था । वो फ़ल्सफ़ा, हिंदसा और इ’ल्म तिब में भी माहिर थे। एक हद तक वो ख़्वाब की ता’बीर बताने का इ’ल्म भी जानते थे। हकीम को उनकी आ’ला इ’ल्मी क़ाबिलियत और ज़ेहानत की वज्ह से हकीम और शैख़ जैसे अल्क़ाब से नवाज़ा गया। वो अपने ज़माने के मा’रूफ़ और हर-दिल-अ’ज़ीज़ शख़्स थे। शो’रा, ओ'रफ़ा और उ’लमा की नज़र में उन्हें निहायत आ’ला मक़ाम हासिल था। वो एक आ’ला दर्जा के शाइ’र थे। सबसे पहले ग़ज़ल को हकीम सनाई ने ही रिवाज दिया। उन्होंने क़साएद, ग़ज़लियात और मसनवियात जैसी सिन्फ़ में तब्अ’-आज़माई की। उनकी मस्नवियों को बहुत ज़्यादा शोहरत हासिल हुई। उनकी मशहूर मस्नवियों में हदीक़तुल-हकीका, तरीक़तुत-तहक़ीक़, सैरुल-इ’बाद इलल-मआ’द, मस्नवी कारनामा, अक़्ल-नामा और इ’श्क़ नामा बहुत मा’रूफ़ हैं। दुनियावी ज़िंदगी से बे-ज़ार हो कर वो ज़ुह्द-ओ-तक़्वा -ओ-सुलूक की तरफ़ माएल हुए। यही वो दौर था जब उनकी शाइ’री ने एक नया मोड़ लिया। मा दर तलब-ए- ज़ुल्फ़ -ए-तू चूँ ज़ुल्फ़-ए- तू पेचाँ मा दर हवस-ए- चश्म -ए-तू चूँ चश्म-ए- तू बीमार हकीम सनाई सादा, वाज़ेह और सरीह अंदाज़ में शाइ’री किया करते थे। उनके कलाम में ज़ुल्फ़, चश्म-ए-बीमार, मय-ओ-मय-कदा, रिंद-ओ-ख़राबात जैसी इस्तिलाहात का इस्ति’माल किया गया है। शायद हकीम सनाई वो पहले शख़्स थे जिन्हों ने सबसे पहले ऐसी इस्तिलाहात का इस्ति’माल किया। हकीम सनाई की वज्ह-ए-शोहरत उनकी मस्नवियाँ हैं। उनकी उस्तादाना महारत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि शैख़ अ’त्तार और मौलाना रुम जैसे अ’ज़ीम शो’रा ने हकीम सनाई को अपना पेशवा तस्लीम किया। हकीम सनाई का साल-ए-वफ़ात 535 हिज्री है।