हरिनाथ के दोहे
बलि बोई कीरति लता कर्ण करी द्वैपात
सींची मान महीप ने जब देखी कुम्हिलात
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जाति जाति ते गुन अधिक सुन्यो न कबहूँ कान
सेतु बांधि रघुबर तरे हेला दे नृप मान
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere