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हुसैन बिन मंसूर हल्लाज

1454 - 1516 | सऊदिया अरबिया

अनल-हक़ का ना’रा लगाने वाला एक शहीद-ए-हक़ सूफ़ी

अनल-हक़ का ना’रा लगाने वाला एक शहीद-ए-हक़ सूफ़ी

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज का परिचय

हुसैन बिन मंसूर हल्लाज की पैदाइश 858 हिज्री में फ़ारस में हुई| मंसूर हल्लाज एक सूफ़ी, मुसन्निफ़ और शाइ’र थे। उनका पूरा नाम अबुल-मुग़ीस अल-हुसैन बिन मंसूर अल-हल्लाज था। उनके वालिद मंसूर पेशे के लिहाज़ से धुनिया थे इसलिए हल्लाज कहलाए। फ़ारस के शिमाल-मश्रिक़ में वाक़े’ एक क़स्बा अत्तूर में पैदा हुए।उ’म्र का इब्तिदाई ज़माना इ’राक़ के शहर वासित में गुज़रा। फिर अहवाज़ के एक मक़ाम तस्तर में सह्ल बिन अ’ब्दुल्लाह और फिर बस्रा में अ’मर मक्की से तसव्वुफ़ में इस्तिफ़ादा किया। फिर बग़दाद आ गए और हज़रत जुनैद बग़दादी के हल्क़ा-ए-तलम्मुज़ में शरीक हो गए। उ’म्र का बड़ा हिस्सा सैर-ओ-सियाहत में बसर किया। बहुत से ममालिक के सफ़र किए जिनमें जज़ीरातुल-अ’रब और ख़ुरासान शामिल हैं। मंसूर हल्लाज इत्तिहाद-ए-ज़ात-ए-इलाही या हमा उस्त के क़ाएल थे। अनल-हक़ या’नी मैं ख़ुदा हूँ, का ना’रा लगाया करते थे। इब्न-ए- दाऊद अल-अस्फ़हानी के फ़तवे की बुनियाद पर पहली मर्तबा गिरफ़्तार हुए फिर दूसरी मर्तबा गिरफ़्तार हुए और आठ साल मुसल्सल अ’सीर रहे और फिर मुक़द्दमे का फ़ैसला आने पर उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया| मंसूर हल्लाज की शहादत के बा’द उ’लमा के एक गिरोह ने उन्हें काफ़िर-ओ-ज़िंदीक़ क़रार दिया और दूसरे गिरोह ने जिनमें मौलाना जलालुद्दीन रूमी और शैख़ फ़रीदुद्दीन अ’त्तार जैसे अ’ज़ीम सूफ़ी भी शामिल थे उन्हें वली और शहीद-ए-हक़ कहा। हल्लाज ने तसव्वुफ़ और तरीक़-ए-तसव्वुफ़ और अपने मख़्सूस अ'क़ाएद-ओ-नज़रियात की शर्ह में मुतअ’द्दिद किताबें और रसाएल क़लम-बंद किए| 922 हिज्री को बग़्दाद में शहीद हुए।


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