महात्मा षेमदास जी के दोहे
साध वेद सब टेरि हैं, सुनैन विषिया प्रांन।।
पिंड पाप कै वस पडै, कहि कहि हारे ग्यांन।।
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काहू पूरब पुन्य करि, तैं पाई नर देह।।
कै महरवान हो मौजदी, जन्म सुफल कर लेह।।
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अब कहूँ गोद कहूँ पालनै, कहूँ हासौ कहूँ रोज।।
गिरयो पडयो घुटने चल्यो, नहीं ग्यांन को खोज।।
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साबधान होय चुप रहे, चितयौ है चहुँ और।।
वाट वीचि ही ले गए, बसत साह की चोर।।
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पंचकै तन काहू रच्यो, बच्यो अगन मंझार।।
जब इनमें कहू कौन था, जो अब कहै हमार।।
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दस महीनां गर्भवास में, तहां रह्यौ मुख मूंदि।।
जहां तात मात की गम नहीं, वहां राखनहारा कौन।।
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नख चख सौंज बनाय करि, प्रभु आन्यो मुक्ती ठौर।।
निपजी में साझी घणा, धनी भए तब ओर।।
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere