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मख़दूम अशरफ़ जहांगीर

1285 - 1386 | कछौछा शरीफ़, भारत

मख़दूम अशरफ़ जहांगीर

फ़ारसी सूफ़ी काव्य 1

 

सूफ़ी उद्धरण 10

एक सूफ़ी के लिए यह ज़रूरी है कि वह जाहिल हो।

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कुछ लोग यह मानते हैं कि नफ़्ल पढ़ना, ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ से बेहतर है, उन का ये ख़्याल ग़लत है, क्योंकि लोगों की ख़िदमत से जो असर दिल पर पड़ता है, वह दिखाई देता है। अगर हम नफ़्ली इबादत और ख़िदमत, दोनों से मिलने वाले नतीजों पर नज़र डालें, तो मानना पड़ेगा कि ख़िदमत-ए-ख़ल्क़, नफ़्ली इबादत से बेहतर है।

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जो व्यक्ति साधना और संघर्ष नहीं करता, वह मुशाहिदा यानी ख़ुदा के दीदार की दौलत हासिल नहीं कर सकता।

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मुरीद की ता'लीम की शुरुआत दिल की सफ़ाई से होती है।

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तवक्कुल ये है कि किसी भी चीज़ के लिए किसी से कुछ माँगा जाए।

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