क़ाज़ी ख़ालीलुद्दीन हसन के अशआर
मैं ज़र्रा था मुझे ज़र्रे से आफ़्ताब किया
फिर अब न ज़र्रा बना आफ़्ताब कर के मुझे
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere