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साबिर कलयरी

1195 - 1291 | सहारनपुर, भारत

साबिर कलयरी का परिचय

उपनाम : ''साबिर''

मूल नाम : अ'लाउद्दीन अ'ली अहमद

जन्म : 21 Feb 1195 | हिरात

निधन : 14 Mar 1291 | उत्तर प्रदेश, भारत

अलाउद्दीन अली अहमद साबिर कलियरी बर्र-ए-सग़ीर पाक-ओ-हिंद के उन औलिया में से हैं जिनसे सिलसिला-ए-चिश्तिया की शाख़ सिलसिला-ए-साबिरीया में मंसूब है. ये हज़रत बाबा फ़रीद गंजशकर के भांजे और महबूब-तरीन ख़ुलफ़ा में से एक हैं और उनके जाँनशीन भी हैं और अहबाब में सबसे पहले मुरीद होने का शरफ़ भी हासिल है.

शुरूआती तालीम हेरात में हासिल की. माँ से क़ुरआन और अरबी और फ़ारसी की तालीम हासिल करने के बाद अपने मामू बाबा फ़रीदुद्दीन गंजशकर के यहाँ अजोदन (पाकपतन शरीफ़) तशरीफ़ लाए और बातिनी उलूम की तरफ़ मुतवज्जा हो गए और अपने मामूँ बाबा फ़रीद गंजशकर अपने भांजे अलाउद्दीन साबिर की ज़ाहिरी और बातिनी तालीम-ओ-तर्बीयत पर ध्यान देने लगे उन्होंने बहुत शौक़ से उलूम-ए-सूरी-ओ-मानवी को हासिल किया. फ़क़त इग्यारह साल की उम्र में उन्होंने बाबा गंजशकर के हाथों पर अपनी वालिदा की मौजूदगी मैं बैअत फ़रमाई और ये बाबा फ़रीद गंजशकर की ख़िदमत में रह कर रुहानी फ़्यूज़-ओ-बरकात हासिल करते रहे.

बाबा फ़रीद ने उनको लंगर तक़सीम करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जिसको उन्होंने ब-ख़ूबी निभाया
साबिर कलयरी नौ बरस तक लगातार आलम-ए-इस्तिग़राक़ में डूबे रहे. आपके उसी हालत में बाबा गंजशकर ने उनको ख़िरक़ा-ए-ख़िलाफ़त अता किया और अपनी कुलाह-ए-मुबारक आपके सर पर रखी.

बाबा गंजशकर ने आपको कलियर शरीफ़ का शाह-ए-वलाएत मुक़र्रर फ़रमाया और आपको कलियर जाने का हुक्म किया. 1255 मैं आप कलियर तशरीफ़ ले गए. वहाँ पर लोगों ने उनका बहुत ही परज़ोर तौर पर इस्तिक़बाल किया और लोग उनके हल्क़ा-ए-इरादत में शामिल होने लगे और उनसे बैअत हो कर दीनी और दुनियावी कामयाबी हासिल करने लगे.

उनके सबसे भरोसेमंद और मोतबर शागिर्द और मुरीद ख़्वाजा शम्सुद्दीन तुर्क थे. ये उनसे अक्सर सवालात किया करते थे और अकसर साबिर साहब के जवाबात उनको हैरान कर दिया करते थे. इसी तरह जब उनका विसाल 1291 ईसवी को हुआ तो उनकी नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ाने वाले वाले ने ख़्वाजा शम्सुद्दीन को काफ़ी हैरत में दाल दिया था और अरसा पहले फ़ना और बक़ा को लेकर किए गए सवाल का जवाब उनको मिल गया.

उनका मज़ार कलियर शरीफ़ ज़िला सहार नुपूर में नहर-ए-गंग के किनारे पर है.

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