समर्थ रामदास का परिचय
अन्य समकालीन संतों की तरह इन्होंने भी अद्वैत मत का प्रतिपादन किया, लेकिन लोक-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर भक्ति मार्ग को ही सरल एवं सर्वोपरि माना। असली नाम नारायण था, जाम्भ गाँव में संवत् 1530 में इनका जन्म हुआ। सात वर्ष की आयु में ही पिता की मृत्यु हो गयी। विवाह के मंडप पर 'सावधान' सुनते ही सावधान हो गये। घर त्याग दिया और नासिक के पास गोदावरी के तट पर साधना की। इसी प्रकार 12 वर्ष तक भ्रमण करते रहे। शिवाजी इनके शिष्य थे। प्रसिद्ध ग्रंथ हैं- दासबोध।