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सुंदरदास छोटे

1596 | दौसा, भारत

सुंदरदास छोटे

पद 5

 

कवित्त 1

 

साखी 9

उहै ब्रह्म गुरु संत उह, बस्तु विराजत येक।

बचन बिलास विभाग श्रम, बन्दन भाव बिबेक।।

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उहै ब्रह्म गुरु संत उह, बस्तु विराजत येक।

बचन बिलास विभाग श्रम, बन्दन भाव बिबेक।।

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तीन गुननि की वृत्ति मंहि, है थिर चंचल अंग।

ज्यौं प्रतिबिबंहि देषिये, हीलत जल के संग।।

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तीन गुननि की वृत्ति मंहि, है थिर चंचल अंग।

ज्यौं प्रतिबिबंहि देषिये, हीलत जल के संग।।

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प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।

सुन्दर स्वाद प्रीति बिन, भूख बिना ज्यौं अन्न।।

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सवैया 2

 

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