शैख़ अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही का परिचय
उपनाम : 'अलखदास'
इनके वालिद का नाम शेख़ इस्माईल था। ये चिश्तिया सिलसिले की साबरिया शाखा में मुरीद थे जो शेख अलाउद्दीन अली बिन साबिर कलियरी से शुरु होता है। शेख़ साहब के वालिद भी बड़े आलिम थे। वहाँ शेख़ अहमद अब्दुल हक़ (1434 ई.) की खानकाह में शेख़ पियारा नामक एक सूफी, मसऊद बक़ का काव्य पढ़ रहे थे। शेख़ साहब को देखकर उन्होंने पाठ बंद कर दिया। शेख़ ने शेख़ पियारा से कहा कि मैं भी इसी तौहीद के ज्ञान की खोज में हूँ। शेख़ पियारा, शेख़ अब्दुल कुद्दूस के खलीफा थे। शेख़ आरिफ ने उन्हें "अन अलहक़" का भाव ग्रहण करने की शिक्षा दी थी। शेख़ पियारा हिंदी में भी कविता करते थे। शेख़ अब्दुल कुद्दूस हिंदी में 'अलखदास' के नाम से कविता करते थे। फारसी में शेख़ साहब का नाम 'अहमदी' थी।
इन्होंने फारसी में अनेक ग्रंथों की रचना की। हिंदी में स्वंतत्र रूप में इनका कोई ग्रंथ नहीं है। इनकी प्रमुख रचनाएँ है- (1) अनवार उल उयून फ़ी असरारुल मकनून, (2) नूरूल हुदा, (3) कुर्रतुऐन, (4) मक्तूबात-ए-कुद्दूसिया और (5) रुश्दनामा (इसका हिंदी अनुवाद अलखबानी के नाम से प्रकाशित हैं।)