सय्यदा ख़ैराबादी के अशआर
फिर उम्मीदों को शुआ'-ए-कामरानी कर अता
क़िस्मत-ए-तारीक को हंगामः-ए-तनवीर दे
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इल्तिजा-ए-'सय्यदा' सुन ले बराए मुस्तफ़ा
क़ौम-ए-मुस्लिम को बहार-ए-आ’लम-ए-तक़दीर दे
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वो अ’ज़्म बाक़ी न रज़्म बाक़ी न शौकत-ओ-शान-ए-बज़्म बाक़ी
हमारी हर बात मिट चुकी है कि हम को क़िस्मत मिटा रही है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere