उमैर हुसामी के सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
बर्र-ए-सग़ीर हिंद-ओ-पाक की ख़ानक़ाहों में उ’र्स के मौक़ा’ से एक रिवायत गागर की उ’मूमन देखने में आती है,जिसमें होता ये है कि मिट्टी के छोटे छोटे घड़ों में जिन को उ’र्फ़-ए-आ’म में ’गागर’ के नाम से जाना जाता है उसमें पानी या शर्बत वग़ैरा भर कर और ऊपर सुर्ख़
शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी
इक्सीर-ए-इ’श्क़ अ’ल्ला-म-तुलवरा हज़रत मख़्दूम शैख़ हुसामुद्दीन मानिकपूरी रहमतुल्लाहि अ’लैहि का शुमार बर्रे-ए-सग़ीर के मशाइख़-ए-चिशत के अकाबिर सूफ़िया में होता है। आप हज़रत शैख़ नूर क़ुतुब-ए-आ’लम पंडवी बिन शैख़ अ’लाउ’ल-हक़ पंडवी के मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा हैं।
हिन्दुस्तानी मौसीक़ी और अमीर ख़ुसरौ
इंसानी जज़्बात के इज़हार के लिए इंसान ने जिन फ़ुनून को वज़ा’ किया है उनमें से एक अज़ीमुश्शान फ़न इ’ल्म-ए-मौसीक़ी है। क़ुदरत के कारोबार में हर जगह मौसीक़ी के अ’नासिर नज़र आते हैं। चुनाँचे चश्मों का क़ुलक़ुल, झरनों का जल-तरंग, परिंदों की चहचहाहट, हवाओं
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere