ज़फ़र अंसारी ज़फ़र के सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो की शाइ’री में सूफ़ियाना आहँग
हिन्दुस्तान में इब्तिदा ही से इ’ल्म-ओ-अदब,शे’र-ओ-हिक्मत, तसव्वुफ़-ओ-मा’रिफ़त,अदाकारी-ओ-मुजस्समा-साज़ी और मौसीक़ी-ओ-नग़्मा-संजी का रिवाज है।अ’ह्द-ए-क़दीम से लेकर दौर-ए-हाज़िर तक ऐसी बे-शुमार शख़्सियात इस सर-ज़मीन पर पैदा होती रही हैं जिन्होंने अपने कारहा-ए-नुमायाँ
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
उर्दू की तर्वीज-ओ-इशा’अत और फ़रोग़-ओ-इर्तिक़ा में सूफ़िया-ए-किराम ने जो ख़िदमात पेश कीं वो किसी साहिब-ए-नज़र से पोशीदा नहीं। इस ज़बान को ’अवाम के दरमियान मक़बूल बनाने और इसके अदबी सरमाए को वुस्’अत ’अता करने में उन ख़ुदा-रसीदा बुज़ुर्गों ने इब्तिदा ही
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere