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ना'त-ओ-मनक़बत
क़िब्ला-ए-अहल-ए-सफ़ा मालिक-ओ-मुख़्तार अ'लीऐ ज़हे सल्ले-अ'ला नाएब-ए-सरकार अ'ली
यादगार शाह वारसी
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ना'त-ओ-मनक़बत
'अली का नाम हर अहल-ए-वफ़ा की शान-ओ-शौकत है'अली मुर्तज़ा फ़ख़्र-ए-उमम राह-ए-हिदायत है
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
अहल-ए-सफ़ा के दीन का क़िब्ला हुसैन हैंअहल-ए-नज़र के वास्ते का'बा हुसैन हैं
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
‘‘सैंकड़ों आदमी ऐसे देखे जो ठाठ में रईसों का मुक़ाबला करते थे, लेकिन आज उनकी हस्ती
रय्यान अबुलउलाई
ना'त-ओ-मनक़बत
मत्मह-ए-अहल-ए-विला है सूरत-ए-तेग़-ए-अ’लीक़ाबिल-ए-मदह-ओ-सना है सीरत-ए-तेग़-ए-अ’ली
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
नाज़िश-ए-अहल-ए-सुनन मख़दूम-ए-दौराँ आप हैंहामिल-ए-इ’ज़्ज़-ओ-शर्फ़ महबूब-ओ-ज़ीशाँ आप हैं
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ना'त-ओ-मनक़बत
समझें मक़ाम-ए-अहल-ए-नज़र ग़ौस-ए-पाक कातकते हैं मुँह क़ज़ा-ओ-क़द्र ग़ौस-ए-पाक का
कामिल शत्तारी
सूफ़ी कहानी
तपते बयाबान में एक शैख़ का नमाज़ पढ़ना और अहल-ए-कारवाँ का हैरान रह जाना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक चटयल मैदान में एक ज़ाहिद ख़ुदा की इ’बादत में मसरूफ़ था। मुख़्तलिफ़ शहरों से हाजियों