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दकनी सूफ़ी काव्य
फ़िक़ा महफूज़े ख़ानी
जो औरत मर्द कूँ रकते है खुशहालसवाब है हक़ में उस औरत के ऊपर आल
क़दरे आलम
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(234) सितार क्यों न बजा,औरत क्यों न नहाई?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
नहीं थी वो औरत कतैं ये खबरबहर जारी है मिसले शकर
गुलामनबी हैदराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा बीबी मरिअम
थी उमरान कूँ औरत नेक वक़्तन होता था फरज़न्द दिलगीर सख़्त
हसन अली शाह
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दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
क़बाहत सूँ आज़ार दिये बेशुमारवही घर ते औरत कूँ भाया बहार
मुल्ला ग़व्वासी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(116) बात की बात ठठोली की ठठोली। मरद की गांठ औरत ने खोली।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
ज़ाद उल अवामीन
जो बालक अछै आये जब सत ऊपरमर्द होवे या होवे औरत अगर
सय्यद मुहम्मद बीजापुरी
दकनी सूफ़ी काव्य
इशारतुल ग़ाफ़िलीन
जो खालिस मुहब्बत करे कोई यारतो औरत ओ पकड़े, सटो उसके मार
सय्यद मुहम्मद आशिक बारह आल
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा हज़रत मरिअम
देखे दो मर्द एक औरत सह जानरहने थे ओ तीनों सो जंगल के म्याँन
ग़रीब शाह
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी 'तुराब' दकनी
कभी नाग़ा नहीं करती थी अक्सरचतुर सब औरत में थी बिचित्तर