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कवित्त
अन्तर कुटिल कठोर भरे अभिमान सो।
अन्तर कुटिल कठोर भरे अभिमान सो।तिनके गृह नहिं रहै सन्त सनमान सों।।
नागरीदास और बनीठनीजी
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सूफ़ी शब्दावली
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
उपमानादिक ते कछू कोप अवै सु अमर्ष।कहियत बचन कठोर तहँ ताप बढ़ै घटि हर्ष।।852।।
रसलीन
पद
रणखांम गढा अस्मान बराबर, ध्वजाउंच
लुटी लंक जब खटपट कठोर, चटपट चटणी लटपट लहणी,निकट भुवन घर खटाटोप पट द्रुमकुट द्रिकिट दधधीमपधीमप,
अमृत राय
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
जेती संपति कृपन कैं तेती सूमति जोर।बढ़त जात ज्यौं ज्यौं उरज त्यौं त्यौं होत कठोर।।111।।
बिहारी
छंद
रावन बान महाबली और अदेव और देवनहूं दृग जोरयो।
घोर कठोर चितै सहजै लछिराम अमी जस दीपन घोरयो।राजकुमार सरोज-से हाथन सों गहि शंभु-सरासन तोरयो।।
लछिराम
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
-चंदायन, 88.6-7 (यहाँ बेल के समान कठोर कुचों के वर्णन से प्रेम एवं रति भाव की उत्पत्ति होती है)
सम्मेलन पत्रिका
पद
प्रेमालाप के पद तनक हरी चितवौजी मोरी ओर
तनक हरी चितवौजी मोरी ओरहम चितवत तुम चितवत नाहीँ दिल के बड़े कठोर