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शे'र
मा'शूक़-ए-बे-परवाह आगे गरचे अ'बस है इल्तिजाउ'श्शाक़ को बेहतर नहीं ज़ीं शेवा-कार-ए-दिगर
क़ादिर बख़्श बेदिल
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- दूसरी दास्तान
परवाह नहीं है, चंगा हूं!मैं इन्सानों का प्यारा हूं,
लियोनिद सोलोवयेव
दोहरा
सदा ना रूप गुलाबां उते सदा ना बाग़ बहारां
चार देहाड़े हुसन जवानी मान किया दिलदारांसिकदे असीं मुहम्मद बख़्शा क्युं परवाह ना यारां
मियां मोहम्मद बख़्श
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
औरहिं चिंता करन दे, तू मति मारे आह।जा के मोदी राम से, ताहि कहा परवाह।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
नहीं है कौसर-ओ-तसनीम की परवाहहै अपने सर पे बशीर-ओ-नज़ीर की गागर
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
औरहिं चिंता करन दे, तू मति मारे आह। जा के मोदी राम से, ताहि कहा परवाह।।
परशुराम चतुर्वेदी
दोहरा
कासदा मन्न नाम ख़ुदा दा वंज मैंडे यार दी ख़िदमत ।
क़ासदा मन्न नाम ख़ुदा दा वंज मैंडे यार दी ख़िदमत ।बे परवाह पुर नाज़ दिलबर है वंज मैंडे दिलदार दी ख़िदमत ।
ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद
ना'त-ओ-मनक़बत
परवाह किसी की नहीं हर इक से ग़नी हूँवाबस्ता-ए-दामान-ए-रसूल-ए-मदनी हूँ
शब्बीर साजिद मेहरवी
ना'त-ओ-मनक़बत
परवाह नहीं जो कोई नहीं क़द्र-दाँ 'अमीर'सद शुक्र कद्र-दान-ए-हुनर ग़ौस-ए-पाक हैं
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
मा'शूक़-ए-बे-परवाह आगे गरचे अ'बस है इल्तिजाउ'श्शाक़ को बेहतर नहीं ज़ीं शेवा-कार-ए-दिगर
क़ादिर बख़्श बेदिल
ना'त-ओ-मनक़बत
हूँ शाह-ए-मदीना की मैं पुश्त-पनाही मेंक्या इस की मुझे परवाह दुश्मन जो ज़माना है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
नहीं परवाह 'मीराँ शाह मुझे दोज़ख़-ओ-जन्नत कीव-लेकिन बे-नियाज़ी से तबीअ'त मेरी डरती है
मीराँ शाह जालंधरी
ना'त-ओ-मनक़बत
करम ही था 'सफ़ी' मुझ पर कि मेरा शौक़-ए-बे-परवाहब-शान-ए-इम्तियाज़ी इम्तिहाँ में कामयाब आया