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सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
इश्क का जिसने दम मारा समझो उसने झख मारा।
(मछली)
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कविता
अन्योक्ति पंचक- बगला बैठा ध्यान में प्रातः जलके तीर
मलकर भस्म शरीर, तीर जब देखी मछली।
कहै 'मीर' ग्रसि चोंच समूची फौरन निगली।
सय्यद अमीर अली मीर
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ग़ज़ल
मुक्ख पिया दा आब-हय्याती असीं मोए तरेहाए
जळ बिन मछली वांग मुहम्मद किचरक रहे तपेंदे
मियां मोहम्मद बख़्श
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
जल में सिंध जु घर करै, मछली चढ़ै खजूरि
सुरति ढीकुली, लेज ल्यौ, मन चित ढोलन हार
भारतीय साहित्य पत्रिका
ख़ालिक़ बारी
ख़ालिक़-बारी
हिर्बा गिरगिट कज़दुम बिच्छू रासू नेवल
सग है कुत्ता माही मछली लुक़्मा केवल
अमीर ख़ुसरौ
सूफ़ी लेख
Malangs of India
दीवानगान सिलसिला कभी हिंदुस्तान के सबसे अमीर सिलसिलों में शुमार होता था. इस सिलसिले के पास
सुमन मिश्रा
राग आधारित पद
राग बिहागरा - सुधि बुधि सब गइ खोय री मैं इस्क दिवानी
सुधि बुधि सब गइ खोय री मैं इस्क दिवानी
तलफत हूँ दिन रैन ज्यों मछली बिन पानी