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ना'त-ओ-मनक़बत
मनाक़िब मुनफ़रिद लहजे में नुदरत ख़ुश मक़ाली भीनवाज़ा फ़िक्र को मेरी ख़ुदा ने कैसी राहत से
साक़िब ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
शब-ए-मे'राज के लहजे में जो तू बात करेसुनने वाला तिरी आवाज़ का शश्दर हो जाए
अख़्तर महमूद वारसी
नज़्म
मेरा रसूल
जिस की कमली के साए में आँख सहर ने खोलीजिस के लहजे में हम तक पहुँची क़ुदरत की बोली
मुज़फ़्फ़र वारसी
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- तीसरी दास्तान
शिकायती लहजे में वह बोलाः "अबे, काफ़िर की औलाद! मैं ऐसा गला कहां से लाऊं? आख़िर,
लियोनिद सोलोवयेव
सूफ़ी लेख
बिहार के प्रसिद्ध सूफ़ी शाइर – शाह अकबर दानापुरी
इस दौरान अपने पीर-ओ-मुर्शिद से बहुत दूर हो गए। जब ज़िंदगी ढलने लगी तो आवाज़ भी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
(यादगार-ए-रोज़गार, स० 862)इस दौरान वो अपने पीर-ओ-मुर्शिद से दूर हो गए। जब उनकी ज़िंदगी ढलने लगी,
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद उ’स्मानी जौनपूरी
दीवान साहब तलबा या मुरीदीन से ख़िदमत लेना पसंद न करते थे। इरादत-मंदों की ख़्वाहिश के
हबीबुर्रहमान आज़मी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अहमद हुसैन चिश्ती शैख़पूरवी
आप अपने वालिद हज़रत शाह शुजाअत हुसैन (मुतवफ़्फ़ा 1308 हिज्री)के हुक्म पर हज़रत शाह अता हुसैन