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ग़ज़ल
मुझे मेरी वफ़ाओं का फ़क़त इतना सिला देनाचला कर तीर नज़रों से मुझे बिस्मिल बना देना
अब्दुल हादी काविश
ग़ज़ल
ख़्वाजा शायान हसन
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कलाम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कविता
उज्जल पख की रैन चैन उज्जल रस दैनी।
सिला सिला प्रति चन्द चमकि किरननि छबि छाई।बिच बिच अम्ब कदम्ब झम्ब झुकि पायनि आई।।
नागरीदास और बनीठनीजी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
आयद सिला-ए-हर ज़माँ अज़ आसमाँ बर 'आशिक़ाँऐ बे-ख़बर आँ-कस कि ऊ बर ईं सिला 'आशिक़ न-शुद
रूमी
सूफ़ी लेख
दाता गंज-बख़्श शैख़ अ'ली हुज्वेरी
ऐ ’अली तू फ़र्रुख़ी दर शहर-ओ-कूदेह ज़े-‘इश्क़-ए-ख़्वेशतन हर-सू सिला
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
नज़्म
मुख़म्मस बर ग़ज़ल-ए-हज़रत-'हाफ़िज़'-शीराज़ी
इश्क़-बाज़ी का नतीजः है बुराख़ुद-सरी का ये मिला आख़िर सिला
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
दामान-ए-'अमल में कोई नेकी नहीं 'ख़ालिद'बस ना'त-ए-मोहम्मद का सिला माँग रहे हैं