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ग़ज़ल
नीयाज़ मकनपुरी
शे'र
जुब्बः-साई जिस से की क़िस्मत चमक उठी 'रियाज़'हज़रत-ए-'साहिर' के दर से क्यूँ हमारा सर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
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कलाम
तमाम 'आलम में हम ने देखा उसी का जल्वा चमक रहा हैये उस की क़ुदरत का है तमाशा सदफ़ में गौहर दमक रहा है
तसद्दुक़ अ’ली असद
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़याल कर के जो मैं ने देखा उसी की सूरत चमक रही हैउसी का नक़्शा है चार-जानिब उसी की रंगत दमक रही है
औघट शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रूमी
मसनवी
बयान-ए-आँकि ईं इख़्तिलाफ़ात दर सूरत-ए-रविश अस्त ने दर हक़ीक़त-ए-राहऊ ज़ यक रंगी-ए-'ईसा बू न-दाश्त
रूमी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दर गह-ए-ख़ल्क़ हम: ज़र्क़-ओ-फ़रेबस्त-ओ-हवसकार दरगाह-ए-ख़़ुदावंद-ए-जहाँ दारद-ओ-बस