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कलाम
हर इक 'आशिक़ नए अंदाज़ से क़ुर्बान-ए-क़ातिल थाक़तील-ए-तेग़-ए-बे-सर था शहीद-ए-नाज़-ए-बे-दिल था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ग़ौस क़ुतुब न उरे उरेरे आशिक़ जाण अगेरे हूजेहड़े मंज़िल आशिक़ पहुंचण ग़ौस न पावण फेरे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ इश्क़ माही दे कोलों फिरन हमेशा खीवे हूजींदे जान माही नूँ डित्ती दोहीं जहानीं जीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ हो ते इश्क़ कमा दिल रक्खीं वांग पहाड़ाँ हूसै सै बदियाँ लक्ख उलाहमें, जाणीं बाग़-बहाराँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अज़ल से हूँ मैं आ'शिक़ जिस के घूँगर वाले बालों कावो दिल है जान है जानाँ है सब अल्लाह वालों का
ग़ौसी शाह
कलाम
आशिक़ राज़ माही दे कोलों, होण कदीं न वांदे हूनींद हराम तिन्हाँ ते जेहड़े ज़ाती इस्म कमांदे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
आशिक़ पढ़न नमाज़ पिरम दी जैं विच हरफ़ न कोई हूजेहा केहा नीत न सक्के उथ दर्दमंद दिल ढोई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सनम के जिस्म में आ कर नफ़्स का तार कहते हैंबरहमन बन के ख़ुद गर्दन में हम ज़ुन्नार रखते हैं
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
यूँ तो बंदे का ज़माने में है बंदा 'आशिक़पर ख़ुदा भी कहीं होता है किसी का 'आशिक़