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कलाम
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अ'जीब सारे जहान सेजो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है
जिगर मुरादाबादी
कलाम
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है 'अर्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
मंज़ूर आरफ़ी
कलाम
ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं है मुझे फ़िक्र-ए-दीं नहीं हैदर-ए-मुर्तज़ा पे 'काविश' झुका सर है ’आजिज़ाना
अब्दुल हादी काविश
कलाम
औघट शाह वारसी
कलाम
लाला-ओ-बर्ग-ओ-गयाह अंजुम-ओ-ख़ुर्शीद-ओ-माहमंज़िल-ए-मक़्सूद तक सैंकड़ों हैं संग-ए-राह