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कलाम
बहुत गो 'इश्क़ में 'मज्ज़ूब' बदला तुम ने हाल अपनेमगर जैसा बदलना चाहिए वैसा कहाँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' अब किसी से भला क्यूँ लगाए दिलदिल आश्ना-ए-दर्द है दर्द आश्ना-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
'मज्ज़ूब' तू भी ग़ैर-ए-ख़ुदा से लगाए दिल'इश्क़-ए-बुताँ है बंदा-ए-हक़ ना-सज़ा-ए-दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
न रह नाशाद सालिक मस्लक-ए-'मज्ज़ूब' पर आ जाअगर हर हाल में तू चाहता है शादमाँ रहना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ज़रा ऐ नासेह-ए-फ़रज़ाना चल कर सुन तो दो बातेंन होगा फिर भी तू 'मज्ज़ूब' का दीवाना देखूँगा
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
दुर्र-ए-मज़मूँ की झड़ी रहती है क्यूँ फिर ये 'हसन'गर मिरी तब-ए'-रवाँ अब्र-ए-गुहर-बार नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
मुझ को सूझा भी तो क्या 'मज्ज़ूब' वहशत का 'इलाजमैं ने दिल वाबस्ता-ए-ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ कर दिया
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
कहीं रोके से रुकती है ये जौलानी तबी'अत कीकि 'मज्ज़ूब' आज-कल जोश-ए-जुनूँ है ज़ोर पर अपना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
जाँ-बाज़ है 'मज्ज़ूब' सुख़न-साज़ नहीं हैवो बोल रहे हैं मिरी आवाज़ नहीं है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
रहता हूँ बे-लब-ओ-दहन रोज़-ओ-शब उन से हम-सुख़नजान-ए-सुख़न है ऐ 'हसन' ये मिरी ख़ामुशी नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ख़ुदा 'मज्ज़ूब' को रख सलामत उस ने चौंकायाजिसे मंज़िल समझ रखा था वो इक ख़्वाब-ए-मंज़िल था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
एक वो दिन थे मोहब्बत से था लुत्फ़-ए-ज़िंदगीअब तो नाम-ए-'इश्क़ से भी सख़्त घबराता है दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
भला 'मज्ज़ूब' कुछ तो होश रखते ऐसे मौक़ा' परग़ज़ब है मेज़बाँ बनना पड़ा उस को जो मेहमाँ था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ऐ मिरे बाग़-ए-आरज़ू कैसा है बाग़-हा-ए-तूकलियाँ तो गो हैं चार सू कोई कली खिली नहीं