वही अब बा'द-ए-मुर्दन क़ब्र पर आँसू बहाते हैं
न आया था जिन्हें मेरी मोहब्बत का यक़ीं बरसों
ज़रा ठहरो मिरे आँसू तो पूरे ख़ुश्क होने दो
अभी आँखों में थोड़ी सी नमी मालूम होती है
नहीं थमते नहीं थमते मिरे आँसू 'बेदम'
राज़-ए-दिल उन पे हुआ जाता है इफ़्शा देखो
बे-इरादा कुछ टपक पड़ते हैं आँसू भी वहाँ
ज़िंदगी की जिस रविश पर मुस्कुरा सकता हूँ मैं
नहीं चलती कोई तदबीर ग़म में
यही क्या कम है जो आँसू रवाँ है
आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है
आँसू सँभल के पोंछिए बीमार-ए-इ’शक़ हूँ
दिल भी लगा हुआ है मेरी चश्म-ए-नम के साथ
मोहब्बत के आँसू हैं पी जाइये
कहीं कोई तूफ़ान आ जाए ना
वफ़ाएँ याद करके वो बहा जाते हैं रोज़ आँसू
रहेगा हश्र तक सरसब्ज़ सब्ज़ः मेरी तुर्बत का
हमें भी न अब चैन आएगा जब तक
इन आँखों में आँसू न भर लाइएगा
मिल गया राह में मुझ को जब वो सनम लाख दिल को सँभाला किया ज़ब्त-ए-ग़म
दिल में हसरत लिए चंद आँसू मगर दफ़्अ'तन मुस्कुराए तो मैं क्या करूँ
जिसे तू राएगाँ समझा था 'वासिफ़'
वो आँसू इफ़्तिख़ार-ए-जाम-ए-जम था
इन्हें आँसू समझ कर यूँ न मिट्टी में मिला ज़ालिम
पयाम-ए-दर्द-ओ-दिल है और आँखों की ज़बानी है
वो सितारा जो मिरे नाम से मंसूब हुआ
दीदः-ए-शब में है इक आख़िरी आँसू की तरह
'पुरनम' ग़म-ए-उल्फ़त में तुम आँसू न बहाओ
इस आग को पानी से बुझाया नहीं जाता
चश्म-ए-तर लख़्त-ए-दिल-ए-सोज़ाँ से आँसू को बुझा
तिफ़्ल-ए-अबतर डाल दे है हाथ अक्सर हाथ में
दर्द की सूरत उठा आँसू की सूरत गिर पड़ा
जब से वो हिम्मत नहीं किसी बल नहीं ताक़त नहीं
रुक गए आँसू मिरे दर्द-ए-जिगर कुछ कम हुआ
इस बुत-ए-सीमीं-बदन का जब नज़ारा हो गया
मैं इक आँसू ही सही हूँ बहुत अनमोल मगर
यूँ न पलकों से गिरा कर मुझे मिट्टी में मिला
आप आएँ तो सही ठोकर लगाने के लिए
मेरी तुर्बत देख कर आँसू रवाँ हो जाएँगे
लगा के ज़ख़्म बहाने चला है अब आँसू
रुका है ख़ून कहीं पट्टियाँ भिगोने से
ख़ून-ए-दिल जितना था सारा वक़्फ़-ए-हसरत कर दिया
इस क़दर रोया कि मेरी आँख में आँसू नहीं
वहीं से ये आँसू रवाँ हैं जो दिल में
तमन्ना का पोशीदा है इक ख़ज़ीना
न पूछ हाल-ए-शब-ए-ग़म न पूछ ऐ 'पुरनम'
बहाए जाते हैं आँसू बहाए जाते हैं
क्या सुर्मा भरी आँखों से आँसू नहीं गिरते
क्या मेहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता
मेरे सोज़-ए-दरूँ ने आँख में आँसू नहीं छोड़े
जहाँ शो'ले भड़कते हों वहाँ शबनम नहीं होती
'पुरनम' उस बे-वफ़ा के लिए
मेरे आँसू दु’आ हो गए
लबों पर नाम ना आँसू हिकायत ना शिकायत हो
असीर-ए-ज़ुल्फ़ दीवाना है दीवाना ये क्या जाने
इधर तो आँखों में आँसू उधर ख़याल में वो
बड़े मज़े से कटी ज़िंदगी जुदाई में
बर्छी थी वो निगाह देखो तो
लहू आँखों में है कि आँसू है
बने आँसू फफूले सूरत-ए-शम्अ'
जलाए हैं हम अपनी चश्म-ए-तर के
शायद कि यही आँसू काम आएँ मोहब्बत में
हम अपनी मता-ए-ग़म बर्बाद नहीं करते
मोती सी वो आब कहाँ आँसू काला मोती है
शायद मेरी हिज्र की शब मुँह की स्याही होती है
मगर आँसू किसू के पोंछे हैं
आस्तीं आज क्यूँ तिरी नम है
इक लहज़ा बहे आँसू इक लहज़ा हँसी आई
सीखे हैं नए दिल ने अंदाज़-ए-शकेबाई
मिल गया राह में मुझ को जब वो सनम लाख दिल को सँभाला किया ज़ब्त-ए-ग़म
दिल में हसरत लिए चंद आँसू मगर दफ़अ'तन मुस्कुराए तो मैं क्या करूँ
मैं समझूँगा कि मेरे दाग़-ए-इस्याँ धुल गए सारे
अगर आँसू तिरी चश्म-ए-तग़ाफ़ुल से निकल आया
चुपके चुपके रात-दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़मानः याद है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere