हाजी महबूब अ'ली के वीडियो
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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हाजी महबूब अ'ली
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अपनी तजल्लियों में वो ऐसे निहाँ रहे हाजी महबूब अ'ली
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अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है हाजी महबूब अ'ली
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आराम के साथी क्या क्या थे जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं हाजी महबूब अ'ली
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उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो हाजी महबूब अ'ली
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क्यूँ न अश्क-बार हुआ करूँ क्यूँ न बे-क़रार रहा करूँ हाजी महबूब अ'ली
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काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो हाजी महबूब अ'ली
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क़िस्मत खुली है आज हमारे मज़ार की हाजी महबूब अ'ली
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कौन बैठा है अब अंदेशा-ए-फ़र्दा ले कर हाजी महबूब अ'ली
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चूमी रिकाब उठ के किसी शहसवार की हाजी महबूब अ'ली
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ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर दे हाजी महबूब अ'ली
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ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ाना हाजी महबूब अ'ली
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जिसे दीद तेरी नसीब हो वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है हाजी महबूब अ'ली
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तेरा ग़म रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी है हाजी महबूब अ'ली
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तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ हाजी महबूब अ'ली
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तोरे द्वारे पड़े जग बीत गए हाजी महबूब अ'ली
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तोरी हर हर अदा को मैं जान गई नाँ हाजी महबूब अ'ली
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दया करो जी सादात हम पर दया करो हाजी महबूब अ'ली
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दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई हाजी महबूब अ'ली
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दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल की हाजी महबूब अ'ली
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प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करो हाजी महबूब अ'ली
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पी के निकला है जो साक़ी तेरे मय-ख़ाने से हाजी महबूब अ'ली
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पीरान-ए-पीर मोहे ऐसा रंगना हाजी महबूब अ'ली
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बख़्शिश कहाँ है साहिब-ए-क़ुरआँ तिरे बग़ैर हाजी महबूब अ'ली
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मिरे होते हुए कोई शरीक-ए-इम्तिहाँ क्यूँ हो हाजी महबूब अ'ली
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मिसाल-ए-मुस्तफ़ा कोई पैग़म्बर हो नहीं सकता हाजी महबूब अ'ली
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याद उन की दिल में रहती है और हिज्र की रातें होती हैं हाजी महबूब अ'ली
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शान सुबहान है इंसान बने बैठे हैं हाजी महबूब अ'ली
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सना बशर के लिए है बशर सना के लिए हाजी महबूब अ'ली
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समझा न हक़ को बंदा कहाया तो क्या हुआ हाजी महबूब अ'ली
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सरकार ग़ौस-ए-आ'ज़म नज़र-ए-करम ख़ुदा-रा हाजी महबूब अ'ली
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हम रौनक़-ए-हस्ती का सामान लुटा बैठे हाजी महबूब अ'ली
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हर दम ख़याल-ए-जानाँ आँखों के रू-ब-रू है हाजी महबूब अ'ली
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हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला हाजी महबूब अ'ली
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हो गई उन से मोहब्बत हो गई हाजी महबूब अ'ली
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दीवान: शुदम दर आरज़ूयत हाजी महबूब अ'ली
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रफ़्तम अंदर तह-ए-ख़ाक उंस-ए-बुतानम बाक़ीस्त हाजी महबूब अ'ली