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हाजी महबूब अ'ली

1914 - 1992

हाजी महबूब अ'ली

वीडियो 66

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हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

हाजी महबूब अ'ली

अपनी तजल्लियों में वो ऐसे निहाँ रहे

हाजी महबूब अ'ली

अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है

हाजी महबूब अ'ली

आराम के साथी क्या क्या थे जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं

हाजी महबूब अ'ली

उल्फ़त में बराबर है वफ़ा हो कि जफ़ा हो

हाजी महबूब अ'ली

काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो

हाजी महबूब अ'ली

क़िस्मत खुली है आज हमारे मज़ार की

हाजी महबूब अ'ली

कौन बैठा है अब अंदेशा-ए-फ़र्दा ले कर

हाजी महबूब अ'ली

चूमी रिकाब उठ के किसी शहसवार की

हाजी महबूब अ'ली

ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर दे

हाजी महबूब अ'ली

ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ाना

हाजी महबूब अ'ली

जिसे दीद तेरी नसीब हो वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद है

हाजी महबूब अ'ली

तेरा ग़म रहे सलामत मेरे दिल को क्या कमी है

हाजी महबूब अ'ली

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

हाजी महबूब अ'ली

तोरे द्वारे पड़े जग बीत गए

हाजी महबूब अ'ली

तोरी हर हर अदा को मैं जान गई नाँ

हाजी महबूब अ'ली

दया करो जी सादात हम पर दया करो

हाजी महबूब अ'ली

दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई

हाजी महबूब अ'ली

दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल की

हाजी महबूब अ'ली

पी के निकला है जो साक़ी तेरे मय-ख़ाने से

हाजी महबूब अ'ली

पीरान-ए-पीर मोहे ऐसा रंगना

हाजी महबूब अ'ली

बख़्शिश कहाँ है साहिब-ए-क़ुरआँ तिरे बग़ैर

हाजी महबूब अ'ली

मिरे होते हुए कोई शरीक-ए-इम्तिहाँ क्यूँ हो

हाजी महबूब अ'ली

मिसाल-ए-मुस्तफ़ा कोई पैग़म्बर हो नहीं सकता

हाजी महबूब अ'ली

शान सुबहान है इंसान बने बैठे हैं

हाजी महबूब अ'ली

सना बशर के लिए है बशर सना के लिए

हाजी महबूब अ'ली

समझा न हक़ को बंदा कहाया तो क्या हुआ

हाजी महबूब अ'ली

सरकार ग़ौस-ए-आ'ज़म नज़र-ए-करम ख़ुदा-रा

हाजी महबूब अ'ली

हर दम ख़याल-ए-जानाँ आँखों के रू-ब-रू है

हाजी महबूब अ'ली

हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला

हाजी महबूब अ'ली

दीवान: शुदम दर आरज़ूयत

हाजी महबूब अ'ली

रफ़्तम अंदर तह-ए-ख़ाक उंस-ए-बुतानम बाक़ीस्त

हाजी महबूब अ'ली

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