आसी गाज़ीपुरी के दोहे
ओस ओस सब कोई कहे आँसू कहै न कोय
मोहि विरहिन के सोग मे रैन रही है रोय
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हम तुम स्वामी एक है कहन सुनन को दोय
मन को मन से तोलिए दो मन कभी न होय
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मै चाहूँ कि उड़ चलूँ पर बिन उड़ा न जाय
काह कहौं करतार को जो पर ना दिया लगाय
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काजर दूँ तो किरकिराए सुर्मा दिया न जाए
जिन नैनन माँ पिय बसै दूजा कौन समाए
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मन मा राखूँ मन जरे कहूँ तो मुख जरि जाय
गूँगे का सपना भयो समझ समझ पछताय
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कर कम्पे लिखनी डिगे अंग अंग थहराय
सुधि आवत छाती फटे पांती लिखी न जाय
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भुज फरकत तोरे मिलन को स्रवन सुनन को बैन
मन माला तोहि नाम का जपत रहत दिन रैन
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere