रसखान
दोहा 4
कहा करै 'रसखानि' को कोऊ चुगुल लबार
जो पै राखनहार है माखन चाखनहार
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मुस्कान माधुरी - ऐ सजनी लोनो लला लखै नंद के गेह
चितयौ मृदु मुस्काइ कै हरी सबै सुधि देह
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भक्ति-भावना - बिमल सरल 'रसखानि' भई सकल 'रसखानि'
सोई नाव 'रसखानि' को चित चातक 'रसखानि'
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भक्ति-भावना - सरस नेह लवलीन वन द्वै सुजान 'रसखानि'
ताके आस बिसास सो पगे प्रान 'रसखानि'
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