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Tapa'n Phulwarwi's Photo'

तपाँ फुलवारवी

1743 - 1817 | फुलवारी शरीफ़, भारत

फ़ुलवारी शरीफ़ के पुर-गो शो’रा में इम्तियाज़ी हैसियत रखने वाले एक अ’ज़ीम सूफ़ी शाइ’र

फ़ुलवारी शरीफ़ के पुर-गो शो’रा में इम्तियाज़ी हैसियत रखने वाले एक अ’ज़ीम सूफ़ी शाइ’र

तपाँ फुलवारवी का परिचय

हज़रत शाह नूरुल-हक़ तपाँ फुलवारवी पीर मुजीबुल्लाह क़ादरी फुलवारवी के बड़े साहिब-ज़ादे शाह अ’ब्दुल-हक़ के फ़र्ज़न्द-ए-अकबर और ख़्वाजा इ’मादुद्दीन क़लंदर के साहिब-ज़ादे शाह ग़ुलाम नक़्श-बंद सज्जाद फुलवारवी के दामाद थे| शाह नूरुल-हक़ तपाँ जमादीउल-अव्वल 1156 हिज्री में फुलवारी शरीफ़ में पैदा हुए। दर्सी किताबें अपने चचा मुल्ला वहीदुल-हक़ अब्दाल से पढ़ी। उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तक्मील के बा’द उ’लूम-ए-रुहानी का शग़फ़ हुआ और हल्क़ा-ए-इरादत में दाख़िल होने की तड़प ने भी ज़ोर मारा। बिल-आख़िर आप अपने जद्द-ए-अमजद हज़रत पीर मुजीबुल्लाह क़ादरी के दस्त -ए-हक़-परस्त पर बैअ’त हुए। रियाज़त-ओ-मुजाहिदा में मश्ग़ूल किए गए।जब पीर मुजीबुल्लाह ने अपने मुरीद को बा-मुराद देखा तो इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से भी नवाज़ा। शाह नूरुल-हक़ तपाँ, शाह ग़ुलाम नक़्श-बंद सज्जाद के दामाद और सज्जादा-नशीन थे। आपको ख़्वाजा इ’मादुद्दीन क़लंदर और पीर मुजीबुल्लाह क़ादरी दोनों का फ़ैज़ान ख़ूब-ख़ूब पहुँचा था। आपने बा’ज़ ना-मुवाफ़िक़ हालात के बाइ’स फुलवारी शरीफ़ से मंगल तालाब, पटना सीटी में क़ियाम किया और ख़ानक़ाह-ए-इ’मादिया क़लंदरिया का सिलसिला आबाद किया। बचपन से शाइ’री का ज़ौक़ था बल्कि फ़ितरी लगाव था। आप तपाँ तख़ल्लुस फ़रमाते थे। आपने किसी के सामने ज़ानू-ए-तलम्मुज़ तय किया मा’लूम नहीं। फ़ारसी और उर्दू दोनों में शे’र कहते थे और साहिब-ए-दीवान थे। तपाँ फुलवारवी फ़ितरी और सूफ़ी शाइ’र थे। उनके फ़ारसी अश्आ’र से ये अंदाज़ा होता है कि उनका कलाम तसव्वुफ़ के हक़ाएक़-ओ-मआ’रिफ़ से पुर है। तपाँ फुलवारी शरीफ के पुर-गो शो’रा में इम्तियाज़ी हैसियत के हामिल हैं। तपाँ उ’र्फ़ी और जामी के बड़े मद्दाह थे और उनके तर्ज़ को अपनाया करते थे। तपाँ ने उ’र्फ़ी के क़सीदे की पैरवी भी की है। तपाँ फ़ितरी तौर पर दिल-ए-बिर्याँ और तब्अ’-ए-रवाँ के हामिल थे और उस पर तसव्वुफ़ और तरीक़त ने मज़ीद जिला पैदा कर दी थी। तपाँ का इंति क़ाल 4 शा’बानुल-मुअ’ज़्ज़म 1233 हिज्री को हुआ और हज़रत लाल मियाँ की दरगाह फुलवारी शरीफ़ में मद्फ़ून हुए।


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