उपस्थिति संवत् 1640-1680 विक्रमी। पहले बासण थे। कहा जाता है कि शेख़ नाम की रंगरे जिन पर आसक्त होने के कारण मुसलमान हो गये। इनकी भाषा ब्रज है। प्रमुख रचनाएं- आलम की कविता, आलम के कवित्त, आलम केलि, कवित्ता शेखसाईं, माधव काम कंदला, रस कवित्त संग्रह, सुदामा चरित्र एवं श्याम स्नेही। रीतिकाल के रीतिमुक्त शाखा के श्रेष्ठ कवि है।