अब्दुल वली उज़लत का परिचय
मूल नाम अब्दुल अली था। तख़ल्लुस 'उज़लत' था। उज़लत मनकुलता और माकुलात के सिद्धहस्त थे। चित्र और संगीत के भी प्रेमी थे। गुजरात के अलावा इन्होंने दिल्ली और हैदराबाद का सफ़र किया था। इसलिए इनकी शायरी में कई रंग उभरते हैं।
उज़लत ने फ़ारसी एवं गूजरी दोनों भाषाओं में शायरी की है। इनके लिखे ग्रंथों में राग-माला, बारामासा, साक़ी-नामा और दीवान-ए-फ़ारसी मशहूर है। उज़लत में गूजरी की अंतिम गूंज सुनायी पड़ती है। उनके बाद गुजरात में उर्दू शायरी का दौर शुरु होता दिखाई देता हैं।