Sufinama
Ata Hussain Fani's Photo'

अता हुसैन फ़ानी

1816 - 1893 | गया, भारत

कैफ़ियतुल-आ’रिफ़ीन और कंज़ुल-अंसाब के मुसन्निफ़ और राम-सागर गया के मशहूर सूफ़ी

कैफ़ियतुल-आ’रिफ़ीन और कंज़ुल-अंसाब के मुसन्निफ़ और राम-सागर गया के मशहूर सूफ़ी

अता हुसैन फ़ानी का परिचय

हज़रत सय्यद शाह अ’ता हुसैन फ़ानी का तअ’ल्लुक़ मशहूर सूफ़ी ख़ानवादा शाह टोली, दानापुर से है। शाह अ’ता हुसैन इब्न-ए-शाह सुल्तान अहमद शहीद 1232 हिज्री में दानापुर में पैदा हुए। उ’लूम-ए- दर्सिया की ता’लीम अपने ख़ानदान ही में हुई। ता’लीम-ए-बातिनी की तरफ़ मुतवज्जिह हुए तो सबसे पहले अपने जद्द-ए-अमजद हज़रत सय्यद शाह ग़ुलाम हुसैन मुनइ’मी दानापुरी के दस्त-ए-हक़-परस्त पर सिलसिला-ए-चिश्तिया ख़िज़्रिया मुनइ’मिया में बैअ’त हुए और इजाज़त-ओ-ख़िलाफ़त से भी नवाज़े गए। मज़ीद रुहानी ता’लीम आ’ला हज़रत सय्यद शाह क़मरुद्दीन हुसैन अबुलउ’लाई से हासिल की। आप अंग्रेज़ी दौर-ए-हुकूमत में ब-सिल्सिला-ए-मुलाज़मत ग़ाज़ीपुर गए और वहाँ शहर-ए-कोतवाल मुक़र्रर हुए।इसी दौरान आपको अपने मुर्शिद-ए-आ’ला हज़रत के विसाल की ख़बर मिली और ओ’हदा से मुस्ता'फ़ी हो कर अ’ज़ीमाबाद वापस चले आए। शाह अ’ता हुसैन फ़ानी एक बेहतरीन नस्र-निगार और क़ादिरुल-कलाम शाइ’र थे। उनकी शाइ’री से ज़्यादा उनकी तस्नीफ़ात मशहूर हुईं। उर्दू का सफ़र-नामा हिदायतुल-मुसाफ़िरीन आपकी उ’म्दा काविश है। फ़ारसी ज़बान में कैफ़ियतुल-आ’रिफ़ीन और कंज़ुल-अन्साब ने फ़ानी को ख़ासी शोहरत दिलाई। कहा जाता है कि आपका उर्दू में एक दीवान भी है। उर्दू में तसव्वुफ़ के निकात पर फ़ानी की तीन मस्नवियाँ सिर्र-ए-अ’ता, गंजीना-ए-औलिया और सिर्र-ए-हक़ हैं। इनमें से सिर्र-ए-हक़ शाए’ हो चुकी है| आपको शे’र-ओ-शाइ’री से फ़ितरी लगाव था। इस लगाव ने इस जज़्बे को तेज़ किया और आपका कलाम हक़ाएक़-ओ-मआ’रिफ़ से मुनव्वर हो गया। फ़ानी के कलाम में सूफ़ियाना हक़ाएक़ की जल्वा-गरी है। नुदरत-ए-ख़याल और ज़बान-ओ-बयान की भी दिल-कशी है। शाह अ’ता हुसैन फ़ानी दानापुर से गया ब-ग़र्ज़-ए-रुश्द-ओ-हिदायत हिज्रत कर गए थे इसीलिए उन्हें फ़ानी दानापुरी सुम्मा गयावी लिखा जाता है। फ़ानी ने वहीं रामसागर गया में ख़ानक़ाह की बुनियाद डाली और रुश्द-ओ-हिदायत का सिल्सिला शुरूअ’ किया। मशहूर-ओ-मा’रूफ़ बुज़ुर्ग और सूफ़ी शाइ’र हज़रत शाह अकबर दानापुरी फ़ानी के बिरादर-ज़ादा और ख़लीफ़ा-ओ-मजाज़ हैं। फ़ानी का इंतिक़ाल 17 शव्वालुल-मुकर्रम 1311 हिज्री में रामसागर गया में हुआ और वहीं मद्फ़ून हुए।


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