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बाबा लाल

बाबा लाल

चौपाई 1

 

साखी 4

जिह की आशा कछु नहीं, आतम राखै शून्य।

तिंहकी नहिं कुछ भर्मणा, लागै पाप पुण्य।।

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आशा विषय विकार की, बांध्या जग संसार।

लख चौरासी फेर में, भरमत बारंबार।।

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जाके अंतर बासना, बाहर धारे ध्यान।

तिंह को गोविंद ना मिलै, अंत होत है हान।।

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देहा भीतर श्वास है, श्वासा भीतर जीव।

जीवे भीतर वासना, किस विध पाइये पीव।।

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