बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण 16

फ़कीर यानी ख़ुदा की रज़ा में राज़ी होना, चाहे उस के पास कुछ न हो। दुनिया की दौलत की फ़िक्र न हो, उस के पास दौलत हो तो ख़ुदा की राह में ख़र्च करने के लिए हो और न हो तो ख़ुदा का शुक्र अदा करे। फ़क़ीर जितना दुनिया की दौलत से बेज़ार होता जाता है, उतना ही उस के जीवन में दिव्य रहस्य खुलते जाते हैं।