बू अली शाह क़लन्दर का परिचय
शैख़ शरफ़ुद्दीन बू-अ’ली क़लंदर, साहिब जज़्ब-ओ-साहिब-ए-करामत थे। औलिया-ए-नामदार में से हैं।
आपकी विलादत 605 हिज्री मुताबिक़ 1209 ई’स्वी को पानीपत में हुई। आप इमाम-ए-आ’ज़म अबू-हनीफ़ा की औलाद में से हैं। ये भी कहा जाता है कि आप शैख़ जमालुद्दीन हांस्वी के ख़ाला-ज़ाद भाई थे। आप के वालिद का नाम फ़ख़्रुद्दीन और वालिदा का नाम बी-बी फ़ातिमा है। बा’ज़ का खयाल है कि बी-बी हाफ़िज़ जमाल है। बू-अ’ली क़लंदर कहलाने की वज्ह-ए-तस्मिया ये है कि हज़रत मौला अ’ली कर्मुल्लाह वज्हहु ने जब आप को दरिया से बाहर निकाला तो आप उसी वक़्त से मस्त-अलस्त हो गए और उसी दिन से शरफ़ुद्दीन बू-अ’ली क़लंदर कहलाने लगे। आप को रहबर की तलाश हुई। बा’ज़ का ख़याल है कि आप मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी और शैख़ शहाबुद्दीन के आ’शिक़ थे। ये भी कहा जाता है कि आप मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी क् थे। बा’ज़ का ख़्याल है कि आप मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा शैख़ नज्मुद्दीन क़लंदर के थे। बा’ज़ के नज़्दीक आप मुरीद-ओ- ख़लीफ़ा शैख़ शहाबुद्दीन आ’शिक़-ए- ख़ुदा के थे जो मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा शैख़ इमामुद्दीन अब्दाल के थे और वो मुरीद-ओ-ख़लीफ़ा ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी के थे।
आप के मक्तूबात का एक मजमूआ’ ब-नाम इख़्तियारुद्दीन किताबी शक्ल में सामने आया। ये मक्तूबात तौहीद के मज़ामीन का उ’म्दा नमूना हैं। मस्नवी बू-अ’ली क़लंदर अगर्चे मुख़्तसर है मगर रुमूज़-ए-तौहीद और मआ’रिफ़ से माला-माल है। आप के दूसरे अश्आ’र रुबाइ’यात, ग़ज़ल और दूसरी अस्नाफ़ पर मुश्तमिल हैं। दीवान-ए-शरफ़ुद्दीन बू-अ’ली क़लंदर फ़ारसी में एक अ’ज़ीम तसव्वुफ़ की किताब है।
आपने हज़रत अ’ली के बारे फ़ारसी में मशहूर शे’र लिखा-
हैदरीयम क़लंदरम मस्तम
बंदा-ए-मुर्तज़ा अ’ली हस्तम
पेशवा-ए-तमाम रिंदानम
कि सग-ए-कू-ए-शे’र-ए-यज़दानम
हज़रत बू-अ’ली शाह क़लंदर के मुरीद-ए-मजाज़ हज़रत मख़दूम सय्यद लतीफ़ुद्दीन दानिश-मंद बड़े पाया के बुज़ुर्ग हुए जिनका मज़ार मोड़ा तालाब बिहार शरीफ़ में मरजा’-ए-ख़लाएक़ है। आपका विसाल 13 रमज़ानुल-मोबारक 724 हिज्री, मुताबिक़ सितंबर 1324-ई’स्वी को हुआ। मज़ार-ए-पुर अनवार पानीपत में मरजा’-ए-ख़लाएक़ है।