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हैदर वारसी

देवा, भारत

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और शहर-ए-गया के नाम-वर वकील और रईस

हाजी वारिस अ’ली शाह के मुरीद और शहर-ए-गया के नाम-वर वकील और रईस

हैदर वारसी का परिचय

उपनाम : 'हैदर'

मूल नाम : सैयद घनी हैदर

जन्म :गया, बिहार

निधन : बिहार, भारत

शहर-ए- गया के नामवर वकील और रईस सय्यद ग़नी हैदर वारसी हाजी वारिस अ’ली शाह से उनके आख़िरी अ’हद में मुरीद हो गए थे। आपको फ़ैज़ान-ए-वारसिया से ऐसा गहरा तअ’ल्लुक़ हुआ कि अपनी बा-फ़रोग़ वकालत और जाएदाद से दस्त-बरदार हो कर देवा में ही रहने लगे और आस्ताना-ए-वारिस की ख़िदमात अंजाम देने लगे जो उनके सिद्क़ और ख़ुलूस को ज़ाहिर करता है। आपके ख़यालात पर शरीअ’त का असर ऐ’तिदाल से ज़्यादा ग़ालिब था। अदा-ए-फ़राइज़, तिलावत क़ुरान-ए-पाक और कसरत-ए-वज़ाइफ़ से अगर फ़ुर्सत मिलती तो वो कुतुब-बीनी किया करते थे। शे’र से क़तई’ दिलचस्पी न थी। लेकिन आपकी ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि आपकी तबीअ’त शाइ’री की तरफ़ मौज़ूं और पुर-जोश हो गई। फिर तो ऐसा हुआ कि नज़्म के पैराए में अपने ख़यालात और कैफ़ियात को बयान फ़रमाने लगे। आप तक़रीबन हर महीने में एक मंज़ूम अ’र्ज़-दाश्त हाजी वारिस अ’ली शाह की ख़िदमत में पेश करने लगे और इस तरह वो शाइ’र की हैसियत से मशहूर हुए। आपकी नज़्मों का मजमूआ’ "अराएज-ए-मंज़ूमा” के नाम शाए’ हो चुका है।

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