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इश्रती के वालिद सैयद यूसुफ हुसैन बसरा से अपना भाग्य आजमाने दकन (बीजापुर) पहुंचे। इश्रती अभी 12 साल का ही था कि उसके पिता का देहांत हो गया। सैयद वंश होने के कारण उसकी शिक्षा दीक्षा में कोई बाधा नहीं पड़ी। बीजापुर दरबार में इश्रती का काफी सम्मान हुआ। जब सन् 1686 में औरंगजेब ने बीजापुर को अपने राज्य में मिला लिया तब उसके दरबार में भी इश्रती को खूब सम्मान मिला। इश्रती की कब्र हैदराबाद गाजीबड़ा दरवाजा के बाहर शाह राजू हुसैनी की मज़ार के उत्तर में हैं।
इनकी कृतियों में- (1) चितलगन, (2) दीपक पतंग और (3) नेहदर्पण महत्वपूर्ण है।