जमाल
दोहा 87
जमला ऐसी प्रीत कर जैसी निस अर चंद
चंदे बिन निस साँवली निस बिन चंदो मंद
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'जमला' ऐसी प्रीत कर जैसी मच्छ कराय
टुक एक जल थी वीछड़ै तड़फ तड़फ मर जाय
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जमला जा सूँ प्रीत कर प्रीत सहित रह पास
ना वो मिलै न बीछड़ै ना तो होय निरास
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दुस्सासन एंचन इचत भरी बसन की माल
चीर बधायो द्रोपदी रच्छा करी 'जमाल'
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या तन की भट्टी करूँ मन कूँ करूँ कलाल
नैणाँ का प्याल: करूँ भर भर पियो 'जमाल'
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