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जमला तहाँ न जाइये जाँ केहरी निवाण
आ सँभराइसि दुख्खड़ा माराइसि अप्पाण
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नयन रंगीले कुच कठिन मधुर बयण पिक लाल
कामण चली गयंद गति सब बिधि वणी 'जमाल'
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अलक लगी है पलक सै पलक लगी भौंनाल
चंदन चोकी खोल दै कब के खड़े 'जमाल'
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या तन की भट्टी करूँ मन कूँ करूँ कलाल
नैणाँ का प्याल: करूँ भर भर पियो 'जमाल'
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दुर्जन निंदत सजन कौं तालक नांहिन लाल
छार घसे ज्यों आरसी दूनीं जोति 'जमाल'
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जमला ऐसी प्रीत कर जैसी निस अर चंद
चंदे बिन निस साँवली निस बिन चंदो मंद
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बंसी बाजै लाल की गन गंधर्व बिहाल
ग्रह तजि तजि तहँ कुल वधु स्नवनन सुनत 'जमाल'
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मुख ग्रीषम पावस नयन तन भीतर जड़काल
पिय बिन तिय तीन ऋतु कबहुँ न मिटैं 'जमाल'
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ससि कलंक खारो समुद्र कमलहिं कंटक नाल
ज्ञानी दुखी मुरख सुखी दईकूं बूझि 'जमाल'
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शुतर गिर्यो भहराय के जब आ पहुँचियो काल
अल्प मृत्यु कूँ देखि कें जोगी भयो 'जमाल'
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गुण के गाहक लख भए नैणा भए दलाल
धनी बसत नहिं बेचहिं भूले फिरे 'जमाल'
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जब तरणपो मुझ्झयो पाय परत नित लाल
कर ग्रह सीस नवावती जोबन गरब 'जमाल'
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अलक जु लागी पलक सूँ पलक रही तिहाँ लाल
खिड़की खोलि न आवही सूरति याक 'जमाल'
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जमला कपड़ा धोइए सत का साबुन लाय
बूँद ज़ लागी प्रेम की टूक टूक हो जाय
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मनसा तो गाहक भए नैणा भए दलाल
बसत खसम बेचै नहीं बटै कहा 'जमाल'
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ससि खंजण माणक कँवल कीर वदन एक डाल
भुजंग पुँछ तें डसत है निरखत डर्यों 'जमाल'
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अब नहि जाउँ सनान को भूलि सखी उहि ताल
इक चकई अरु कमल कौं बहुत वियोग 'जमाल'
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रे हितियारे अधरमी तुँ न आवत लाल
जोबन अजुंरी नीर सम छिन घट जात 'जमाल'
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जमला प्रीत सुजाण सें जे कर जाणै कोय
जैसा मेला निजर का तैसा सेज न होय
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सोना बया न नीपजै मोती लगै न डाल
रूप उधारा नाँ मिलै भूलै फिरौ 'जमाल'
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नैणाँ का लडुवा करूँ कुच का करूँ अनार
सीस नाय आगे धरूँ लेवो चतर 'जमाल'
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एक सखी ऐसे कह्यो वे आये घन लाल
उझकि बाल झुकि कैं लखै अति दुख भयो 'जमाल'
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खोटे का को कहै धनी खोटे दाम हि लाल
सोई ता कौं आदरै जाके दाम 'जमाल'
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दुस्सासन एंचन इचत भरी बसन की माल
चीर बधायो द्रोपदी रच्छा करी 'जमाल'
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यो मन नीके लगत हो मोहत मो मन लाल
कहूँ कहा मोहन तुमैं पीत न होत 'जमाल'
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पिय फूले तैं हूँ हरी पिया हरैं हूँ डाल
पिया मो हु मो में पिया इक ह्वै रहे 'जमाल'
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अरूझि रीझ रीझै नहीं होतनि मोही लाल
पिय आवनकी आस सौं लालहि भई 'जमाल'
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मोर मुकुट कटि काछनी, मुरली सबद रसाल
आवत है बनि विमल कै मेरे लाल 'जमाल'
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डगमग नयन सुसगमगे विमल सु लखे जु बाल
तसकर चितवनि स्याम की चित हर लियो 'जमाल'
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जमला ऐसी प्रीत कर ज्यूँ बालक की माय
मन लै राखै पालणै तन पाणी कूँ जाय
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जब जब मेरे चित्त चढ़ै, प्रीतम प्यारे लाल
उर तीखे करवत ज्यूँ बेधत हियो 'जमाल'
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अलक जु लागी पलक पर पलक रही तिहँ लाल
प्रेम-कीर के नैन में नींद न परै 'जमाल'
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या तन की सार्रैं करूँ प्रीत जु पासे लाल
सतगुरु दाँव बताइया चोपर रमे 'जमाल'
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राधे की बेसर बिचैं बनी अमोलक बाल
नन्दकुमार निरखत रहैं आठों पहर 'जमाल'
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जमला प्रीत न कीजियै काहू सों चित लाय
अलप मिलण बिछुड़न बहुत तड़फ तड़फ जिय जाय
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तरवर पत्त निपत्त भयो फिर तपयो तत्काल
जोबन पत्त निपत्त भयो फिर पतयौ न 'जमाल'
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विधि बिधि कै सब विधि जपत कोऊ लहत न लाल
सो विधि को विधि नंद घर खेलत आप 'जमाल'
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नैना कहियत पनिगनी कहौ तुम्हाँरे लाल
डसै पिछै सबदन कछू लागत नांहि 'जमाल'
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कर घूँघट जग मोहिये बहुत भुलाए लाल
दरसन जिनैं दिखाइयाँ दरसन जोग 'जमाल'
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करज्यो गोर 'जमाल' की नगर कूप के मांय
मिर्ग-नैनी चपला फिरैं पडैं कुचन की छाँय
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सज्जन एहा चाहिये जेहा तरवर ताल
फल भच्छत पानी पियत नाहिं न करत 'जमाल'
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काहू कै बस न हौ वस न सु काके लाल
बसन कौन के जात हो पलटैं भेष 'जमाल'
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पूनम चाँद कसूँभ रँग नदी तीर द्रम डाल
रेत भींत भुज लिपणो ऐ थिर नहीं 'जमाल'
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चित्र चतेरा जो करै रचि पचि सूरत बाल
वो चितवनि वो मुर चलँन क्यूँकर लखै 'जमाल'
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प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लाल
चकमक जुग जल में रहै अगन न तजै 'जमाल'
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जग सागर है अति गहर लहरि विषैं अति लाल
चढ़ि जिहाज़ अति नाम की उतरें पार 'जमाल'
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जोबन आए गाहकी नैणाँ मिले दलाल
गाहक आए लेन कूँ बेचो कयूँ न 'जमाल'
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तिय ननदी पिय सासू सो कलह करी तत्काल
साँझ परत सूनो भवन बुझई दीप 'जमाल'
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अबसि चैन-चित रैण-दिन भजहीं खगाधिपध्याय
सीता-पति-पद-पद्म-चह कह 'जमाल' गुण गाय
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जमला ऐसी प्रीत कर जैसी केस कराय
कै काला कै ऊजला जब तब सिर सूँ जाय
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