जमाल के दोहे
जमला ऐसी प्रीत कर जैसी निस अर चंद
चंदे बिन निस साँवली निस बिन चंदो मंद
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जमला जा सूँ प्रीत कर प्रीत सहित रह पास
ना वो मिलै न बीछड़ै ना तो होय निरास
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'जमला' ऐसी प्रीत कर जैसी मच्छ कराय
टुक एक जल थी वीछड़ै तड़फ तड़फ मर जाय
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मिलै प्रीत न होत है सब काहू कैं लाल
बिना मिलें मन में हरष साँची प्रीत 'जमाल'
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अबसि चैन-चित रैण-दिन भजहीं खगाधिपध्याय
सीता-पति-पद-पद्म-चह कह 'जमाल' गुण गाय
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जमला ऐसी प्रीत कर ज्यूँ बालक की माय
मन लै राखै पालणै तन पाणी कूँ जाय
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जब जब मेरे चित्त चढ़ै, प्रीतम प्यारे लाल
उर तीखे करवत ज्यूँ बेधत हियो 'जमाल'
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मोर मुकुट कटि काछनी, मुरली सबद रसाल
आवत है बनि विमल कै मेरे लाल 'जमाल'
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या तन की भट्टी करूँ मन कूँ करूँ कलाल
नैणाँ का प्याल: करूँ भर भर पियो 'जमाल'
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दुस्सासन एंचन इचत भरी बसन की माल
चीर बधायो द्रोपदी रच्छा करी 'जमाल'
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राधे की बेसर बिचैं बनी अमोलक बाल
नन्दकुमार निरखत रहैं आठों पहर 'जमाल'
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जमला प्रीत न कीजियै काहू सों चित लाय
अलप मिलण बिछुड़न बहुत तड़फ तड़फ जिय जाय
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सकल क्षत्रपति बस किये अपणे ही बल बाल
सबला कुँ अबला कहै मूरख लोग 'जमाल'
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जम जोगन मैं भई घाल गले मृग-छाल
वन-वन डोलत हूँ फिरूँ करत 'जमाल' 'जमाल'
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जमला लट्टू काठ का रंग दिया कर्तार
डोरी बाँधी प्रेम की घूम रहया संसार
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पिय करन सब अरपियो तन मन जोबन लाल
पिया पीर जानें नहीं किस सौं कहौं 'जमाल'
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प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लाल
चकमक जुग जल में रहै अगन न तजै 'जमाल'
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जमला सहु जग हूँ फिरी बाँध कमर मृग-छाल
अजहूँ कंत न मानही अवगुन कोण 'जमाल'
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जोगिनि ह्वै सब जग फिरी कमरि बाँधि मृगछाल
बिछुरे साजन ना मिले कारन कौन 'जमाल'
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जमला करै ते क्या डरें कर कर क्या पछताए
रोपै पेड़ बबूल का आम कहाँ तें खाय
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स्रवन छाँड़ि अधरन लगे ये अलकन के बाल
काम डसनि नागनि जहीं, निकसे नाहिं 'जमाल'
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जमला जिय गाहक भए नैणा भए दलाल
धनी वसत नहिं वेच ही भूले फिरत 'जमाल'
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साजण विसराया भला सुकरया करै बेहाल
देखो चतर विचार के साँची कहै 'जमाल'
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या तन खाख लगाय के खाखा करूँ तन लाल
भेष अनेक बनाय कै भेटों पिया 'जमाल'
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प्रीत रीति अति कठिन प्रीत न कीजै लाल
मिले कठिन विछरन बहुत नित जिय जरै 'जमाल'
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सज्जन हित कंचन-कलश तोरी निहारिय हाल
दुर्जन हित कुमार-घट बिनसिन जुरै 'जमाल'
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कियौ करेजो काँथरी करी डोर पिय लाल
साँस सुई सींवत फिरौं आठौं पहर 'जमाल'
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हरै पीर तापैं हरी बिरद् कहावत लाल
मो तन में वदन भरी सो नहिं हरी 'जमाल'
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जमला एक परब्ब छबि चंद मधे विविचंद
ता मध्ये होय नीकसे केहर चढ़े गयंद
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तिय ननदी पिय सासू सो कलह करी तत्काल
साँझ परत सूनो भवन बुझई दीप 'जमाल'
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कबहुँ न छिन ठहरत हैं मधुकर नैनाँ लाल
पहुप अधिक बहु रूप के हेरत फिरैं 'जमाल'
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पहिरैं भूषन होत है सब के तन छबि लाल
तुव तन कंचन तै सरस जोति न होत 'जमाल'
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मोर मुकुट कटि काछिनी गल फूलन की माल
कह जानौं कित जात हैं जगकी जियन 'जमाल'
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सब घट माँही राम है ज्यौं गिरिसुत में लाल
ज्ञान गुरु चकमक बिना प्रकट न होत 'जमाल'
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स्याम पूतरी सेत हर अरूँ ब्रह्म चख लाल
तीनों देवन बस करे क्यौं मन रहै 'जमाल'
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परि कटारी विरह की टूट रही उर साल
मूएँ पीछैं जो मिलौ जीयत मिलौ 'जमाल'
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मन ग्राहक के पास हैं नैना बड़े रसाल
घटत बढ़त बहु भाव करि मिले जु वसत 'जमाल'
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या तन की जूती करूँ काढ़ रँगाऊँ खाल
पाथन से लिपटी रहूँ आठूँ पोर 'जमाल'
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जग सागर है अति गहर लहरि विषैं अति लाल
चढ़ि जिहाज़ अति नाम की उतरें पार 'जमाल'
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डगमग नयन सुसगमगे विमल सु लखे जु बाल
तसकर चितवनि स्याम की चित हर लियो 'जमाल'
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अलक जु लागी पलक पर पलक रही तिहँ लाल
प्रेम-कीर के नैन में नींद न परै 'जमाल'
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या तन की सार्रैं करूँ प्रीत जु पासे लाल
सतगुरु दाँव बताइया चोपर रमे 'जमाल'
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तरवर पत्त निपत्त भयो फिर तपयो तत्काल
जोबन पत्त निपत्त भयो फिर पतयौ न 'जमाल'
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विधि बिधि कै सब विधि जपत कोऊ लहत न लाल
सो विधि को विधि नंद घर खेलत आप 'जमाल'
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नैना कहियत पनिगनी कहौ तुम्हाँरे लाल
डसै पिछै सबदन कछू लागत नांहि 'जमाल'
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कर घूँघट जग मोहिये बहुत भुलाए लाल
दरसन जिनैं दिखाइयाँ दरसन जोग 'जमाल'
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere