जौहर वारसी के अशआर
मिरा सज्दा-ए-मोहब्बत कभी इस तरह अदा हो
कि मिरी जबीं झुके जब न उठे तुम्हारे दर से
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मिरे आँसुओं के क़तरे हैं चराग़-ए-राह-ए-मंज़िल
उन्हें रौशनी मिली है तपिश-ए-दिल-ओ-जिगर से
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere