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जिगर मुरादाबादी

1890 - 1960 | मुरादाबाद, भारत

सबसे प्रमुख पूर्वाधुनिक शायरों में शामिल अत्याधिक लोकप्रियता के लिए विख्यात

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मौलवी हैदर हसन अख़्तर

आदमी आदमी से मिलता है

आदमी आदमी से मिलता है आबिदा परवीन

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है

इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है आबिदा परवीन

इ'श्क़ की हद से निकलते फिर ये मंज़र देखते

इ'श्क़ की हद से निकलते फिर ये मंज़र देखते अज्ञात

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे

कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे आबिदा परवीन

जल्वा ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ नज़र देखते रहे

जल्वा ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ नज़र देखते रहे आबिदा परवीन

जान कर मिन-जुमला-ए-ख़ासान-ए-मय-ख़ाना मुझे

जान कर मिन-जुमला-ए-ख़ासान-ए-मय-ख़ाना मुझे अ'ली वारिस वारसी

दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई

दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल उन को सुनाई न गई हाजी महबूब अ'ली

दिल बुर्द अज़ मन दीरोज़ शामे

दिल बुर्द अज़ मन दीरोज़ शामे मौलवी हैदर हसन अख़्तर

ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है

ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है अ'ज़ीज़ मियां

रिंद जो मुझ को समझते हैं उन्हें होश नहीं

रिंद जो मुझ को समझते हैं उन्हें होश नहीं

वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना

वो अदा-ए-दिलबरी हो कि नवा-ए-आशिक़ाना अज्ञात

हैरत-ए-'इश्क़ नहीं शौक़-ए-जुनूँ गोश नहीं

हैरत-ए-'इश्क़ नहीं शौक़-ए-जुनूँ गोश नहीं

दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद

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