जिगर मुरादाबादी के अशआर
मैं अपनी आह के सदक़े कि मेरी आह में भी
तिरी निगाह के अंदाज़ पाए जाते हैं
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मैं वो साफ़ ही न कह दूँ जो है फ़र्क़ मुझ में तुझ में
तिरा दर्द दर्द-ए-तन्हा मिरा ग़म ग़म-ए-ज़माना
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टैग : ग़म
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कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
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टैग : अदा
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अल्लाह अगर तौफ़ीक़ न दे इंसान के बस का काम नहीं
फ़ैज़ान-ए-मोहब्बत आम सही इरफ़ान-ए-मोहब्बत आम नहीं
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टैग : इंसान
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शब-ए-वस्ल क्या मुख़्तसर हो गई
ज़रा आँख झपकी सहर हो गई
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टैग : आँख
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ख़ुदा-या ख़ैर करना नब्ज़ बीमार-ए-मोहब्बत की
कई दिन से बहुत बरहम मिज़ाज-ए-ना-तवानी है
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टैग : ख़ुदा
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जल्वा-ए-ज़ात ऐ मआ'ज़-अल्लाह
ताब-ए-आईना-ए-सिफ़ात गई
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टैग : आईना
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अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता
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टैग : एहसास
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आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है
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टैग : आँसू
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ख़याल-ए-यार सलामत तुझे ख़ुदा रक्खे
तिरे बग़ैर कभी घर में रौशनी न हुई
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टैग : ख़ुदा
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इ’श्क़ को बे-नक़ाब होना था
आप अपना जवाब होना था
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टैग : इश्क़
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दिल गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म गया सारी काएनात गई
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टैग : ग़म
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जिस पे तेरी नज़र नहीं होती
उस की जानिब ख़ुदा नहीं होता
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टैग : ख़ुदा
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इ’श्क़ ने तोड़ी सर पे क़यामत ज़ोर-ए-क़यामत क्या कहिए
सुनने वाला कोई नहीं रूदाद-ए-मोहब्बत क्या कहिए
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टैग : इश्क़
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हमें भी न अब चैन आएगा जब तक
इन आँखों में आँसू न भर लाइएगा
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टैग : आँसू
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क़ातिल रहबर क़ातिल रहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन
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टैग : क़ातिल
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मेरी ज़बाँ पे शिकवा-ए-अहल-ए-सितम नहीं
मुझ को जगा दिया यही एहसान कम नहीं
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टैग : एहसान
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इन्हें आँसू समझ कर यूँ न मिट्टी में मिला ज़ालिम
पयाम-ए-दर्द-ओ-दिल है और आँखों की ज़बानी है
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टैग : आँसू
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दिल कि जिस पर हैं नक़्श-ए-रंगा-रंग
उस को सादा किताब होना था
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टैग : किताब
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किए मुझ पे एहसाँ ग़म-ए-यार ने
हमेशा को नीची नज़र हो गई
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टैग : ग़म
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हर शय को मेरी ख़ातिर-ए-नाशाद के लिए
आईना-ए-जमाल बना कर चले गए
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टैग : आईना
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मिरी सम्त से उसे ऐ सबा ये पयाम-ए-आख़िर-ए-ग़म सुना
अभी देखना हो तो देख जा कि ख़िज़ाँ है अपनी बहार पर
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टैग : ख़िज़ाँ
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हर क़दम के साथ मंज़िल लेकिन इस का क्या इ’लाज
इ’श्क़ ही कम-बख़्त मंज़िल-आश्ना होता नहीं
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टैग : इश्क़
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किसी की मस्त-निगाही ने हाथ थाम लिया
शरीक-ए-हाल जहाँ मेरी बे-ख़ुदी न हुई
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टैग : ख़ुदी
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जब निगाहें उठ गईं अल्लाह री मेराज-शौक़
देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
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टैग : इंतिज़ार
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सोज़-ए-ग़म देख न बरबाद हो हासिल मेरा
दिल की तस्वीर है हर आईना-ए-दिल मेरा
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टैग : आईना
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इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई
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टैग : आह
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आना है जो बज़्म-ए-जानाँ में पिंदार-ए-ख़ुदी को तोड़ के आ
ऐ होश-ओ-ख़िरद के दीवाने याँ होश-ओ-ख़िरद का काम नहीं
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टैग : ख़ुदी
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इ’श्क़ की बर्बादियों को राएगाँ समझा था मैं
बस्तियाँ निकलीं जिन्हें वीरानियाँ समझा था मैं
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टैग : इश्क़
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दीवानगी हो अ’क़्ल हो उम्मीद हो कि यास
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया
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टैग : उम्मीद
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तिरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई
वो ज़िंदगी तो मोहब्बत की ज़िंदगी न हुई
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टैग : ख़ुशी
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करिश्मा-साज़ी-ए-हुस्न-ए-अज़ल अरे तौबा
मिरा ही आईना मुझ को दिखा के लूट लिया
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टैग : आईना
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क्यूँ मस्त-ए-शराब-ए-ऐश-ओ-तरब तकलीफ़-ए-तवज्जोह फ़रमाएँ
आवाज़-ए-शिकस्त-ए-दिल ही तो है आवाज़-ए-शिकस्त-ए-जाम नहीं
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टैग : आवाज़
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आगे क़दम बढ़ाएँ जिन्हें सूझता नहीं
रौशन चराग़-ए-राह किए जा रहा हूँ मैं
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टैग : चराग़
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न होगा हमारा ही आग़ोश ख़ाली
कुछ अपना भी पहलू तही पाइएगा
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टैग : आग़ोश
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वो अज़-ख़ुद ही नादिम हुए जा रहे हैं
ख़ुदा जाने क्या क्या ख़याल आ रहे हैं
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टैग : ख़ुदा
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हुकूमत के मज़ालिम जब से इन आँखों ने देखे हैं
जिगर हम बम्बई को कूचा-ए-क़ातिल समझते हैं
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टैग : क़ातिल
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फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन
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मुझ से लगे हैं इ'श्क़ की अ'ज़्मत को चार चाँद
ख़ुद हुस्न को गवाह किए जा रहा हूँ मैं
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टैग : चाँद
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इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल आ’शिक़ फैले तो ज़माना है
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टैग : आ’शिक़
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पैहम जो आह आह किए जा रहा हूँ मैं
दौलत है ग़म ज़कात दिए जा रहा हूँ मैं
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दिल कि मुजस्सम आईना-सामाँ
और वो ज़ालिम आईना-दुश्मन
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टैग : आईना
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गुलशन-परस्त हूँ मुझे गुल ही नहीं अ'ज़ीज़
काँटों से भी निबाह किए जा रहा हूँ मैं
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कभी शाख़-ओ-सब्ज़ा-ओ-बर्ग पर कभी ग़ुंचा-ओ-गुल-ओ-ख़ार पर
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ मिरा हक़ है फ़स्ल-ए-बहार पर
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वाह-रे शौक़-ए-शहादत कू-ए-क़ातिल की तरफ़
गुनगुनाता रक़्स करता झूमता जाता हूँ मैं
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ख़याल-ए-यार सलामत तुझे ख़ुदा रक्खे
तिरे बग़ैर कभी घर में रौशनी न हुई
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टैग : घर
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मेरे अ'र्ज़-ए-ग़म पे वो कहना किसी का हाए हाए
शिकवा-ए-ग़म शेवा-ए-अहल-ए-वफ़ा होता नहीं
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टैग : ग़म
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जब निगाहें उठ गईं अल्लाह-री मेराज-शौक़
देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
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टैग : इंतिज़ार
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इ’श्क़-ए-ला-महदूद जब तक रहनुमा होता नहीं
ज़िंदगी से ज़िंदगी का हक़ अदा होता नहीं
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टैग : आसमान
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लगते ही ठेस टूट गया साज़-ए-आरज़ू
मिलते ही आँख शीशा-ए-दिल चूर चूर था
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere