ख़्वाजा हसन निज़ामी के सूफ़ी लेख
महापुरुष ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी
आल इंडिया रेडियो देहली से ख़्वाजा हसन सानी निज़ामी की हिंदी तक़रीर अगर मैं आप से पूछूँ कि आपने कोई फ़क़ीर देखा है तो आपका उत्तर होगा क्यों नहीं! बहुत फ़क़ीर देखे हैं। मगर मैं कहूँगा कि नहीं फ़क़ीर आपने मुश्किल से ही कोई देखा होगा। आज कल तो हर फटे
सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
हर जमाअ’त और हर गिरोह में ऐसे अश्ख़ास भी शामिल होते हैं जिन्हें शुमूलियत के बावजूद उस जमाअ’त और गिरोह का नुमाइंदा नहीं कहाजा सकता। चुनाँचे सूफ़ियों में अभी ऐसे लोग ब-कसरत गुज़रे हैं, और अब भी मौजूद हैं जिनको नाम-निहाद सूफ़ी ही समझना चाहिए। लेकिन इसका
शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
आपका असली नाम शम्सुद्दीन है।आपके वालिद-ए-माजिद जनाब अ’लाउद्दीन फिर्क़ा-ए-इस्माई’लिया के इमाम थे।लेकिन आपने अपना आबाई मज़हब तर्क कर दिया था।आप तबरेज़ में पैदा हुए और वहीं उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तहसील की।आप अपने बचपन का हाल ख़ुद बयान फ़रमाते हैं कि उस वक़्त