लल दद्द का परिचय
इन्हें कश्मीर की राबिया कहा जाता है। यह जगती के पालने में सन् 1300/01 ई. में आयी। ऐसा कहा जाता है कि यह एक ब्राह्मण परिवार में सिमपोर गाँव में पैदा हुई थी। इनका विवाह पांपोर में हुआ था। इनका जन्म सुल्तान अलाउद्दीन के शासनकाल में हुआ था। गृहस्थ जीवन के पालन के साथ साथ वह बह्य चिंतन में पूरी तरह निमग्न हो गयी और बाद में विरक्त विरागिनी होकर कुछ समय के लिए लोगों से दूर एकांत में रहने लगी। सुल्तान शहाबुद्दीन के शासनकाल में इनका निधन हुआ। इनके लिखे वाख कश्मीरी जनमानस में खूब प्रचलित है। कश्मीर में यहाँ तक कहा जाता है कि हमारे लिए या तो खुदा या फिर लली। इनके निधन के विषय में कहा जाता है कि श्रीनगर से 28 मील दूर श्रीनगर जम्मू राजमार्ग पर स्थित वे जिब्रोर (बिजबिहाड़ा) गाँव में जुमा मस्जिद की दीवार के पीछे इन्होंने अपने प्राण त्यागे। इनकी कोई समाधि या मज़ार नहीं है, जैसा कि इन्होंने अपने वाख में लिखा था-
मेरे लिए जन्म-मरण एक समान है
ना मैं किसी के लिए रोऊँगी और
न कोई मेरे लिए रोएगा।