महाराज हरिदास का परिचय
प्राचीन समय में क्षत्रियों का आजीवन भूमि अधिकार से था। लूट डकैती से चला करता था। इन्होंने भी गृहस्थी पालने के लिए डकैती का ही मार्ग अपनाया। कहते हैं कि एक दिन कोई संत उधर से गुजरे और हरिसिंह ने उनको भी लूटने के विचार से रोका। महात्मा के वचनों से उनका अंतर्मन बदल गया। महात्मा ने उन्हें आध्यात्मिक पथ का उपदेश दिया और अन्तर्धान हो गये। कहते हैं कि वह महात्मा गोरखनाथ थे। उन्होंने अपने शस्त्र आदि वहीं एक कुएं में डाल कर वहाँ से दो-तीन कोस पर पहाड़ी प्रदेश की सबसे बड़ी पहाड़ी तीरवी डूंगरी की ओर चले गये। उसी पहाड़ी में इन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई और फिर भ्रमण पर निकल पड़े। अनेक स्थानों पर भ्रमण करके अंतिम समय के समय डोडवाणे में और वहीं आखिरी सांस ली। निरंजनी संप्रदाय इन्हीं से चला। इनकी वाणियाँ मिलती हैं। वाणी की भाषा उस समय की हिंदवी कही जा सकती है।