महात्मा सेवादास जी
पद 1
साखी 9
जन सेवादास सतगुरु मिल्या, पाया आतम भेव।।
संसा भागा भरम गया, भज अलख निरंजन देव।।
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जन सेवादास सतगुरु मिल्या, मेहल्या मस्तक हाथ।।
जाता उल्टा फेरिया, अब सुमिरण लागे नाथ।।
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सतगुरु दरवै सिख परि, संसा सब खोवै।।
तनमन पांचो उल्टि करि, जन सेवा सुध होवै।।
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सतगुरु दरवै सिष्य परि, तब सुमिरण लै लागै।।
जन सेवा सुख होवै प्राण मैं, संसा सब भागै।।
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सतगुरु सिख्य पर द्रवे, मलचर दे धोवै।।
जन सेवादास दुरमति सब हरै, संसा सब खोवै।।
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