बोहरा जाति के थे। महदी मौऊद के अकीदों को अपनाकर राजस्थान में एक ऐसी जमात को इकट्ठा किया जो आज भी 'दायरा' के नाम से पहचानी जाती है। इन्होंने ज्यादातर फ़ारसी में लिखा है। कुछ रचनाएँ हिंदवी, रेख़्ता या गूजरी में भी मिलती है। भाषा सरल, चलती हुई और प्रभावशाली है।