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मुज़्तर ख़ैराबादी

1856 - 1927 | ग्वालियर, भारत

हिन्दुस्तान के मा’रूफ़ ख़ैराबादी शाइ’र और जाँ-निसार अख़तर के पिता

हिन्दुस्तान के मा’रूफ़ ख़ैराबादी शाइ’र और जाँ-निसार अख़तर के पिता

मुज़्तर ख़ैराबादी

ग़ज़ल 58

शे'र 107

कलाम 10

दोहा 10

तुम ही जगत-महराज हो और 'मुज़्तर' तुमरे दास

जिन हालन चाहो रखो पर रखना अपने पास

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पी मोरा मन पीउ की पी दिन हैं मैं रैन

जैसे नजरिया एक है देखत के दो नैन

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मैं खोटी हूँ तुम खरे खरे तुम्हारे काज

खोट खोट सब छाँट दो खरा बना दो आज

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चित्त मोरा बे-चित्त किया मार के नैनाँ बान

मित्र बने तुम चित्र के चित्र किया क़ुर्बान

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तन पाया तब मन मिला मन पाया तब पीउ

तन-मन दोनों पी के हैं पी का नाम है जीउ

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राग आधारित पद 3

 

बैत 4

 

ना'त-ओ-मनक़बत 7

पुस्तकें 1

 

वीडियो 4

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इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

अज्ञात

ऐसे दिनन बरखा-रुत आइन घर नाईं हमरे श्याम रे

अज्ञात

ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर दे

हाजी महबूब अ'ली

सुन ऐ बाद-ए-सबा तू जानिब-ए-तैबा अगर गुज़रे

अज्ञात

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