नादिम शाह वारसी का परिचय
अ’ब्दुर्रहीम शाह वारसी, नादिम तख़ल्लुस करते थे। आप देवा ज़िला' बाराबंकी के रहने वाले हाजी वारिस अ’ली शाह के ख़ादिम-ए-ख़ास थे। शैदा वारसी “हयात-ए-वारिस” में लिखते हैं कि “ये मोहल्ला मलिकाना क़स्बा मंदिर-वाला ज़िला’ हरदोई के बाशिंदा थे। उनकी पैदाइश एक आ’ला और ज़ी-वक़ार ख़ानदान में हुई थी।इब्तिदा ही से ख़ुदा-परस्त वाक़े’ हुए थे। हाजी वास अ’ली शाह की इ’नायत की ब-दौलत अपना बेहशतर वक़्त देवा शरीफ़ में गुज़ारने लगे। ख़ुदा-तर्सी और मोहब्बत-ए-इलाही के जज़्बा को देखकर हाजी वारिस अ’ली ने उनको गंगवार-कुटी देवा में ही सुकूनत इख़्तियार करने का हुक्म दिया और वो यहीं रहने लगे। उनके वालिद का नाम रुस्तम अ’ली शाह वारसी था। ये भी वारसी थे। हाजी वारिस अ’ली की गु़लामी में आने के बा’द अ’ब्दुर्रहीम शाह वारसी का नाम नादिम रखा गया और रहीम शाह नादिम से मशहूर हुए। नादिम वारसी का इंतिक़ाल गंगवार ही में हुआ और वहीं सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए। आज भी उनका मज़ार गंगवार में मरजा’-ए-ख़लाइक़ बना हुआ है। रहीम शाह वारसी नादिम शे’र-ओ-सुख़न से भी दिलचस्पी रखते थे और बेहतरीन शे’र कहा करते थे। उन्होंने भजन, ठुमरी, कजरी, होली, सावन के गीत वग़ैरा लिखे हैं। उनका कलाम “ यादगार-ए-नादिम” के नाम से शाए’ हो चुका है।